आज सम्म घर को चुल्हो जलेकै छ जेनतेन
आज सम्म घर को चुल्हो जलेकै छ जेनतेन
निश्चल क्षेत्री
आज सम्म घर को चुल्हो जलेकै छ जेनतेन
जिन्दगानी जसो तसो चलेकै छ जेनतेन
मनको ताप्ले जली जली धढ्केकै छ ढुक्ढुकी
दिलको दियो निभ्ने रात ढलेकै छ जेनतेन
गासको जुगाड भएकै छ नरोकिने चाल संगै
झुपडिले शिरको घाम छलेकै छ जेनतेन
माथि पुग्न दिनै हुन्न भन्ने रित जताततै
त्यसै माथि बिबस्ताले दलेकै छ जेनतेन
कहिले पिडा कहिले खुशी भरिन्छ यि नयन भरी
स्मिर्तिका अश्रु दाना फलेकै छ जेनतेन
सधैं औशी हुन्न पकै छिचोल्ने छ रोशनी ले
आशा पाल्दै मनको टुकी बलेकै छ जेनतेन
आज सम्म घर को चुल्हो जलेकै छ जेनतेन
जिन्दगानी जसो तसो चलेकै छ जेनतेन
No comments:
Post a Comment